रविवार, 19 जून 2022

सिरीज टेस्ट लैंप कैसे बनाये ओर उपयोग करे

 नमस्कार दोस्तो,

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हम सब जानते है की एक इलेक्ट्रिशियन के जीवन मे टूल्स का कितना महत्व है । उसी प्रकार सिरीज़ टेस्ट लैम्प भी इलेक्ट्रिशियन का प्रमुख ओजार है,इसके प्रयोग से विभिन्न प्रकार के शॉर्ट सर्किट ओर  ओपन सर्किट का परीक्षण आसानी से किया जा सकता है । ये परीक्षण करते समय बल्ब की चमक स्तर से उपकरण के दोष का पता लगाया जाता हे ,ये काम कोई अनुभवी इलेक्ट्रिशियन ही कर सकता है ।

आज हम इस पोस्ट मे सिखेंगे की 

टेस्ट लैंप कैसे बनाया जाता है.       

टेस्ट लैम्प बनाना बहुत ही आसान काम है इसे हम दो प्रकार से बना सकते है । 
1)वर्क शॉप हेतु बोर्ड पर 
2) केवल तार के साथ -कही भी लाने ले जाने के लिए 
टेस्ट लैम्प का कनैक्शन आरेख इस प्रकार का होता है । 
 

 

आवश्यक सामग्री-

 हमें टेस्ट ले पर बनाने के लिए निम्न वस्तुओं की आवश्यकता
मीटर वायर


 1)  200 वाट का बल्ब (1)
 2)  2 मीटरतार 
3)     होल्डर (1)
4)    टू पिन टॉप (1)
5)   स्विच 6A॰  (1)
6)   बोर्ड ( यदि टेस्ट लैम्प बोर्ड पर  बनाना हो तो  )
 
> टेस्ट लैम्प बनाने के लिए  सबसे पहले तार को दो बराबर भागो मे काट ले।
> ओर दोनों तारो के एक सिरे पर टू पिन टॉप सेट कर ले 
> अब एक तार  को  बीच से काटकर उसके दोनों सिरे होल्डर मे लगाए। 
 

टेस्ट लैम्प प्रयोग करने की विधि 

जिस उपकरण का  उपकरण का  परीक्षण करना है उसे  सिरीज़ टेस्ट लैम्प के श्रेणी क्रम मे जोड़कर बल्ब की चमक स्तर से विभिन्न परीक्षण करते है । 
उदाहरण 1) हम एक तीन स्पीड कूलर मोटर के साथ प्रयोग करके टेस्ट लैम्प की कार्यविधि आसानी समझ सकते है । 
> सबसे पहले कूलर मोटर के टर्मिनल को स्विच से हटाकर  टर्मिनल की कलर कोडिंग के आधार पर उनकी पहचान करते है ,  कूलर  की मोटर मे सामान्यतः वायरिंग इस प्रकार की जाती है । 
> कूलर  की मोटर मे कनैक्शन के तारे दो साइड पर निकलती है  । 
> एक साइड दो तार होते है जो कैपेसिटर से जोड़े जाते है। 
 
>  ओर दूसरी साइड पर 4 तारे निकलती है ओर चारो का कलर भी अलग अलग होता है । 
(1) blue नीला = यह रनिंग ओर स्टार्टिंग वाइंडिंग का कॉमन वायर होता है । 
(2) black  काला  , (3) red लाल , (4) white सफेद = ये तीनों तार एक ही वाइंडिंग से टेपिंग प्रणाली से निकलते है।
 
   कूलर  की मोटर को टेस्ट ;लैम्प से चेक करके हम मोटर को बिना खोले ही ये पता लगा सकते है की मोटर मे क्या दोष है, जिस कारण से मोटर बंद है । 

 open circuit test खुला पथ  परीक्षण ओर शॉर्ट सर्किट टेस्ट

open circuit test खुला पथ  परीक्षण करने के  लिए टेस्ट लैम्प के सिरे  को नीले तार से जोड़कर  दूसरे सिरे  को लाल , काले , या सफेद सिरे से  जोड़ते  है  यदि बल्ब बिलकुल न जले तो परिपथ open circuit test खुला पथ  कहलाता हे । 
 
> ओर इसी परीक्षण मे यदि बल्ब 100% जले तो यह परिपथ शॉर्ट सर्किट है । 
 
 >  इसी परीक्षण मे यदि बल्ब  50 % - 80% के बीच जले तो इस मोटर की वाइंडिंग सही है ओर कैपेसिटर जोड़ने पर चल जाएगी । 
 
 
 
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यह भी पढे >>>>>>>>>basic electricity 
 
 
 

 

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

इंटरेंसिक एवं एक्स्ट्रेंसिक अर्धचालक { intrensic and extrensic semiconductor }

अर्धचालको के प्रकार


अर्धचालको का प्रयोग मूल रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स में होता है , इनके अलग अलग गुणों के आधार पर इनसे कई  इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाये जाते है।

 

अर्धचालक दो प्रकार के होते है।  

इंटरेंसिक अर्धचालक { intrensic semiconductor }

वे पदार्थ जिनके परमाणु की अंतिम कक्षा में 4  इलेक्टान पाए जाते है। ex . सिलिकॉन ,जर्मेनियम ,कार्बन आदि। 
इन्हे शुद्ध  या नेज अर्धचालक भी कहते है। 
  

 

एक्स्ट्रेंसिक  अर्धचालक { extrensic semiconductor }

शुद्ध  अर्ध चालकों में डोपिंग [अशुद्धि  मिलाकर ] करके extrensic semiconductor  का निर्माण किया जाता है।अशुद्धि  मिलाने से अर्धचालक की चालकता बढ़ती हे।
ये अशुद्धि  मिलाने के आधार पर 2 प्रकार के होते है। 


N  टाइप सेमीकंडक्टर

N  प्रकार के अर्धचालक निर्माण का उद्देश्य है की इनमे{ NEGATIVE CHARGE CARRER } ऋणावेश वाहक  मेजोरिटी में रहे व धनात्मक आवेश वाहक माइनॉरिटी में रहे। 

{ इलेक्टान  ऋणात्मक आवेश वाहक व होल्स  धनात्मक आवेश वाहककहलाते है। }

इनमे अशुद्धि रूप में ऐसे तत्व को मिलाया जाता है  जिनकी अंतिम कक्षा में 5 इलेक्ट्रॉन हो।,
इन्हे दाता  प्रकार की अशुद्धि  भी कहते है ,क्यों की यह अस्टक पूरा होने के बाद जो इले. बचता हे उसे त्याग देती है। 
 
जैसे    {P } फास्फोरस , {AS }आर्सेनिक  ,{BI } बिस्मथ ,{SB } ऐंटिमनी 


 

   P टाइप सेमीकंडक्टर 

P प्रकार के अर्धचालक निर्माण का उद्देश्य है की इनमे{ NEGATIVE CHARGE CARRER } ऋणावेश वाहक माइनॉरिटी में रहे व धनात्मक आवेश वाहक मेजोरिटी  में रहे। 

इनमे अशुद्धि रूप में ऐसे तत्व को मिलाया जाता है  जिनकी अंतिम कक्षा में 3  इलेक्ट्रॉन हो।,
इन्हे ग्राही  प्रकार की अशुद्धि  भी कहते है।

जैसे {AL } अलुमिनियम ,{B }बोरान ,{IN }इंडियम ,{GA }गेलियम 




N व P  टाइप सेमीकंडक्टर एक दूसरे से ठीक विपरीत गुणों वाले है। 

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                                   आईटीआई के बाद SELF एम्प्लायमेंट

डायोड क्या है। ,यह कैसे कार्य करता है।

डायोड  क्या है। ,यह कैसे कार्य करता है। 

 आप इस पोस्ट में जानेंगे 
> डायोड क्या है। 
> डायोड की सरंचना।
>डायोड की कार्यप्रणाली। 

                

डायोड  क्या है।

डायोड एक इलेक्ट्रॉनिक अवयव है।डायोड का निर्माण इन्ट्रेंसिक एवं  एक्स्ट्रेंसिक अर्धचालको के आवश्यकतानुसार  मिश्रण से किया जाता है। डायोड एकदिशीय युक्ति है ,यह धारा का प्रवाह  केवल एक दिशा में ही होने देता है। 

डायोड की संरचना 

 

 

 

 जब p  एवं n  प्रकार के अर्धचालको को उष्माप्रक्रिया  द्वारा जोड़ दिया जाता है तो बनी हुई नई संयुक्त युक्ति को डायोड कहते है। 
डायोड शब्दावली
 लेयर  >  डायोड में प्रयुक्त अर्धचालको की संख्या के आधार पर ही डायोड में लेयर होती है।लेयर की संख्या 2 या इससे अधिक भी हो सकती है। 
जंक्शन  >  दो अर्धचालक  परतो के मिलान बिंदु को जंक्शन कहा  जाता है। 
डिप्लेशन लेयर [अवक्षय परत ] >  

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

संधारित्र [capacitor ] ,धारिता [capacitance ]

           संधारित्र [capacitor ] ,धारिता [capacitance ]

इस  पोस्ट में हम कैपेसिटर की बनावट व धारिता के बारे में पढेंगे ,इसके पहले हम   प्रेरक एवं प्रेरकत्व के बारे में पढ़  चुके है। 




capacitor  structure

कैपेसिटर >>   

कैपेसिटर मुख्य रूप से  चालक प्लेटो के बीच विद्युत रोधी पदार्थ भरके तैयार किये जाते हे। सामान्य अवस्था में इन प्लेटो पर इलेक्ट्रान समान रूप से उपस्थित रहते है किन्तु किसी कैपेसिटर को आवेशित करते समय विद्युत स्त्रोत से जोड़ने पर इलेक्ट्रॉन व् प्रोटोन अलग अलग प्लेट पर एकत्र हो जाते है। 
जिस प्लेट पर अधिक इलेक्ट्रान होते है उसे ऋणावेशित प्लेट तथा जिस प्लेट पर प्रोटोन अधिक होते है उसे धनावेशित प्लेट  कहते हे। 
इस प्रक्रिया के दौरान केपेसीटर व स्त्रोत के वोल्टेज का मान बराबर होने तक केपेसीटर परिपथ से धारा लेता है ,वोल्टेज बराबर होने पर धारा का मान शून्य हो जायेगा व केपेसीटर भी पूरी तरह आवेशित हो जायेगा। 

आम बोलचाल  भाषा में कैपेसिटर को  कंडेंसर  भी कहते हे।


धारिता  >>>

किसी केपेसीटर की आवेश स्टोर करने की क्षमता को उसकी धारिता कहते हे। इसका प्रतीक C  एवं मात्रक फैरड {F} हे। . 

किसी केपेसीटर की धारिता>>   C = Q / V 


किसी केपेसीटर की धारिता 4 कारको  निर्भर करती हे -
1} प्लेट का आकार     C ∝ A 
> प्लेट का आकार बढ़ने पर किसी केपेसीटर की धारिता बढ़ती हे। 

2 } प्लेट की संख्या     C ∝ N-1 
> प्लेट की संख्या बढ़ने पर किसी केपेसीटर की धारिता बढ़ती हे।

3 } परावैद्युत माध्यम की मोटाई     C ∝ 1 / t 
 
परावैद्युत माध्यम की मोटाई बढ़ने पर किसी केपेसीटर की धारिता घटती हे। 

4} परावैद्युत स्थिरांक      C ∝ K 


परावैद्युत स्थिरांक का मतलब प्लेटो के बिच भरे जाने वाले अचालक पदार्थ  के ध्रुवण स्तर से है। 


 

केपेसीटर के प्रकार 

A } कार्य के आधार पर            B ] परावैद्युत माध्यम  आधार पर 
>>  केपेसीटर कार्य के आधार पर 3 प्रकार के होते है। 
1 . स्थिर मान केपेसीटर
2  समायोजनीय केपेसीटर
3   परिवर्तनीय केपेसीटरtype of capaciutor

>> परावैद्युत माध्यम  के आधार पर केपेसीटर 6 प्रकार  के होते है .type of capaciutor
  1. पेपर केपेसीटर
  2. अभ्रक केपेसीटर
  3. मृतिका {सिरेमिक }केपेसीटर
  4. एलेक्ट्रोलायटिक केपेसीटर
  5. आयल केपेसीटर
  6. पॉली -कार्बोनेट केपेसीटर

 

केपेसीटर केकार्य 

 >> PF सुधारने में किरचॉफ 
>> सिंगल फेज मोटर में फेज विभक्त करने में 
>> DC  फ़िल्टर परिपथों में 



>>आपको  यह पोस्ट केसी लगी कमेंट  करके जरूर बताये। 


यह भी पढ़े >>>>   किरचॉफ  के नियम 

                      >>       आईटीआई के  बाद स्वरोजगार

    सिरीज टेस्ट लैंप कैसे बनाये ओर उपयोग करे

     नमस्कार दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे पेज             www.itielectrician.com  पर ..... हम सब जानते है की एक इलेक्ट्रिशियन के जीवन मे टूल्स क...