अर्धचालको के प्रकार
अर्धचालको का प्रयोग मूल रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स में होता है , इनके अलग अलग गुणों के आधार पर इनसे कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाये जाते है।
अर्धचालक दो प्रकार के होते है।
इंटरेंसिक अर्धचालक { intrensic semiconductor }
वे पदार्थ जिनके परमाणु की अंतिम कक्षा में 4 इलेक्टान पाए जाते है। ex . सिलिकॉन ,जर्मेनियम ,कार्बन आदि।
इन्हे शुद्ध या नेज अर्धचालक भी कहते है।
एक्स्ट्रेंसिक अर्धचालक { extrensic semiconductor }
शुद्ध अर्ध चालकों में डोपिंग [अशुद्धि मिलाकर ] करके extrensic semiconductor का निर्माण किया जाता है।अशुद्धि मिलाने से अर्धचालक की चालकता बढ़ती हे।
ये अशुद्धि मिलाने के आधार पर 2 प्रकार के होते है।
N टाइप सेमीकंडक्टर
N प्रकार के अर्धचालक निर्माण का उद्देश्य है की इनमे{ NEGATIVE CHARGE CARRER } ऋणावेश वाहक मेजोरिटी में रहे व धनात्मक आवेश वाहक माइनॉरिटी में रहे।
{ इलेक्टान ऋणात्मक आवेश वाहक व होल्स धनात्मक आवेश वाहककहलाते है। }
इनमे अशुद्धि रूप में ऐसे तत्व को मिलाया जाता है जिनकी अंतिम कक्षा में 5 इलेक्ट्रॉन हो।,
इन्हे दाता प्रकार की अशुद्धि भी कहते है ,क्यों की यह अस्टक पूरा होने के बाद जो इले. बचता हे उसे त्याग देती है।
जैसे {P } फास्फोरस , {AS }आर्सेनिक ,{BI } बिस्मथ ,{SB } ऐंटिमनी
P टाइप सेमीकंडक्टर
P प्रकार के अर्धचालक निर्माण का उद्देश्य है की इनमे{ NEGATIVE CHARGE CARRER } ऋणावेश वाहक माइनॉरिटी में रहे व धनात्मक आवेश वाहक मेजोरिटी में रहे।
इनमे अशुद्धि रूप में ऐसे तत्व को मिलाया जाता है जिनकी अंतिम कक्षा में 3 इलेक्ट्रॉन हो।,
इन्हे ग्राही प्रकार की अशुद्धि भी कहते है। जैसे {AL } अलुमिनियम ,{B }बोरान ,{IN }इंडियम ,{GA }गेलियम
N व P टाइप सेमीकंडक्टर एक दूसरे से ठीक विपरीत गुणों वाले है।
यह पोस्ट आपको केसी लगी कमेंट करके जरूर बताये।
ALSO READ >>>> सोल्डरिंग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें