मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

इंटरेंसिक एवं एक्स्ट्रेंसिक अर्धचालक { intrensic and extrensic semiconductor }

अर्धचालको के प्रकार


अर्धचालको का प्रयोग मूल रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स में होता है , इनके अलग अलग गुणों के आधार पर इनसे कई  इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाये जाते है।

 

अर्धचालक दो प्रकार के होते है।  

इंटरेंसिक अर्धचालक { intrensic semiconductor }

वे पदार्थ जिनके परमाणु की अंतिम कक्षा में 4  इलेक्टान पाए जाते है। ex . सिलिकॉन ,जर्मेनियम ,कार्बन आदि। 
इन्हे शुद्ध  या नेज अर्धचालक भी कहते है। 
  

 

एक्स्ट्रेंसिक  अर्धचालक { extrensic semiconductor }

शुद्ध  अर्ध चालकों में डोपिंग [अशुद्धि  मिलाकर ] करके extrensic semiconductor  का निर्माण किया जाता है।अशुद्धि  मिलाने से अर्धचालक की चालकता बढ़ती हे।
ये अशुद्धि  मिलाने के आधार पर 2 प्रकार के होते है। 


N  टाइप सेमीकंडक्टर

N  प्रकार के अर्धचालक निर्माण का उद्देश्य है की इनमे{ NEGATIVE CHARGE CARRER } ऋणावेश वाहक  मेजोरिटी में रहे व धनात्मक आवेश वाहक माइनॉरिटी में रहे। 

{ इलेक्टान  ऋणात्मक आवेश वाहक व होल्स  धनात्मक आवेश वाहककहलाते है। }

इनमे अशुद्धि रूप में ऐसे तत्व को मिलाया जाता है  जिनकी अंतिम कक्षा में 5 इलेक्ट्रॉन हो।,
इन्हे दाता  प्रकार की अशुद्धि  भी कहते है ,क्यों की यह अस्टक पूरा होने के बाद जो इले. बचता हे उसे त्याग देती है। 
 
जैसे    {P } फास्फोरस , {AS }आर्सेनिक  ,{BI } बिस्मथ ,{SB } ऐंटिमनी 


 

   P टाइप सेमीकंडक्टर 

P प्रकार के अर्धचालक निर्माण का उद्देश्य है की इनमे{ NEGATIVE CHARGE CARRER } ऋणावेश वाहक माइनॉरिटी में रहे व धनात्मक आवेश वाहक मेजोरिटी  में रहे। 

इनमे अशुद्धि रूप में ऐसे तत्व को मिलाया जाता है  जिनकी अंतिम कक्षा में 3  इलेक्ट्रॉन हो।,
इन्हे ग्राही  प्रकार की अशुद्धि  भी कहते है।

जैसे {AL } अलुमिनियम ,{B }बोरान ,{IN }इंडियम ,{GA }गेलियम 




N व P  टाइप सेमीकंडक्टर एक दूसरे से ठीक विपरीत गुणों वाले है। 

यह पोस्ट आपको केसी  लगी कमेंट करके जरूर बताये। 
                                   
                                   आईटीआई के बाद SELF एम्प्लायमेंट

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