soldering,सोल्डरिंग
सोल्डरिंग के द्वारा किसी जोड़ का स्थायित्व बढ़ जाता हे एवं धारा प्रवाह अधिकतम [१००%] हो पता हे।
दो समान या असमान धातु के तारो को तीसरी धातु की सहायता से उष्मा प्रक्रिया से जोड़ना सोल्डरिंग कहलाता है।
> इस तीसरी धातु को फिलर धातु कहते हे।
>ज्यादातर फिलर धातु टिन व सीसे के मिश्रण से बनाते है।
>फिलर धातु का गलनांक कम करने के लिए मिश्रण में टिन की मात्रा को बढ़ाया जाता हे और सीसे की मात्रा घटाते हे।
>आर्मेचर की वाइंडिंग के सिरों को कम्यूटेटर सेगमेंट पर सोल्डरिंग करके ही जोड़ा जाता हे।
> सोल्डरिंग क्रिया को आसान बनाने के लिए फ्लक्स का प्रयोगकरते हे।
सोल्डरिंग विधिया
1 सोडरिंग आयरन द्वारा > इस विधि में 65 -125 वाट सोल्डरिंग आयरन का प्रयोग किया जाता हे
2 ब्लो लैंप द्वारा > इसमें एक ब्लो लैंप और सोल्डर रॉड की आवश्यकता होती है।
>इस विधि का प्रयोग बड़े जोड़ो पर सोल्डरिंग करने में किया जाता हे।
3 सोल्डरिंग पात्र और कड़छी द्वारा >> इस विधि में सोल्डरिंग करते समय जॉइंट के ऊपर गरम गरम फिलर धातु मिश्रण डाला जाता हे।
याद रखने योग्य
>प्लंबर व् अन्य मेटल व्यवसायों में उपयुक्त सोल्डर को स्पेलटर कहते है।
>एल्युमिनियम धातु के जोड़ो पर प्रयुक्त सोल्डर-ALCA -P[टिन 70 %+AL 3 %+2 %]
>फ्लक्स के उपयोग से धातुओं की सतह का आक्सीकरण नहीं है।
>फ्लक्स सोल्डर को पिघलाने में भी सहायक होता है।
>सोने ,चांदी को जोड़ने में उपयुक्त फ्लक्स -सुहागा
>ब्रेजिंग में पीतल का टांका लगाया जाता हे।
>सामान्य इलेक्ट्रिकल कार्यो के लिए प्रयुक्त सोल्डर 66 %तीन+34 %सीसा
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Super sir
जवाब देंहटाएंthanks dear
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